आनंद अभिव्यक्ति
‘अद्भुत् आनंद’
तमाम उम्र ‘न’ ना कह सका सब को।
अब ‘न’ भी नहीं कह सकता सब्र को।।
इसलिए:
खुद जल कर ही, रौशनी करनी होंगी।
खुद चल कर ही, मंज़िले तय करनी होंगी।।
क्योंकि:
अब दिशा सही है, दशा अचल।
मन स्थिर है, भावनाएं प्रबल।।
लक्ष्य बड़ा है, और है अटल।
अब मिलेगा अद्भुत-आनंद।
पल-पल, अविरल।।
#गोपीकृष्ण बाली
#अभिव्यक्ति
(जब जब चिंतन-मनन होता है, कुछ नया उभरता है, कुछ पुराना निखरता है, जब जब अपने को खोजा है, और समाज की बनी चार दीवारों को लांघ कर, मुखोटों को उतारा है, तब तब पाया एक अद्भुत नज़ारा है।)
इस आनंद को शब्दों मे पिरोने की कोशिश करने की प्रेरणा को बल मिला Tarumeet Singh Bedi जी को मिल कर और Harshit Kumar की पोस्ट को पढ़ कर।
पुनः अपनी जड़ों से जुड़ने का, अपनी सभ्यता – संस्कार को जोड़ने का यह एक छोटा सा प्रयोग व् प्रयास है (हिंदी में) कृपया गलतियों को नज़रअंदाज करने का सहयोग करें।
#MissionHappiness के सभी मित्रों का जो अंग्रेजी मे अच्छा लिखते है, और सभी साथी जो भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देते है, उन का भी धन्यवाद!
AHha Zindagi
चलते-चलते:
जब जब ख़ुदा को ढुँढनें निकला मैं।
तब तब अपने को ही खो दिया मैंने।।
फिर जो समेटें ख़्वाब पराएँ-अपने।
ख़ुदा को ख़ुद के रूबरू पाया मैंने।।